वर्तमान विवाह संस्था एवं युवा अभिवृत्ति Contemporary Marriage Institute and Youth Attitude
Education
हिन्दू संस्कृति में विवाह आदिम समाज से आधुनिक समाज तक पुरुष एवं स्त्री को क्रमषः पति और पत्नी की सामाजिक, धार्मिक एवं वैधानिक प्रस्थिति प्रदान करने वाली महत्त्वपूर्ण संस्था मानी गयी है। भारतीय हिन्दू परम्पराओं में विवाह को संस्थाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सम्मानीय एवं गौरवषाली माना जाता रहा है। हिन्दू समाज में विवाह किसी भी साधारण व्यक्ति के जीवन की प्रधान संस्था के रूप में मौजूद है, चूंकि इससे व्यक्ति की नई सामाजिक, सांस्कृतिक एवं जैविक प्रस्थितियों का आरम्भ होता है। हिन्दू विवाह एक कानूनन बंधन नहीं है, बल्कि ऐसा गठबंधन माना जाता है जिसका विच्छेद हिन्दू समाज के सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों का उल्लंघन करना है। पारम्परिक रूप से यह संविदा न होकर के संस्कार माना गया है। जिसका मूल उद्देष्य उन सभी पुरुषार्थों को सम्पूर्ण करना होता है जिन्हें अर्जित करने में एक पति एवं एक पत्नी की संयुक्त सहभागिता हो। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हिन्दू जीवन के प्रमुख पुरुषार्थ है, पुरुषार्थ अर्थात् कर्तव्य या जीवन जीने के लिए किया जाने वाला प्रयास। धर्म, अर्थ एवं काम को त्रिवर्ग कहा जाता है एवं मान्यतानुसार त्रिवर्ग की पूर्ति का विधान विवाह संस्कार द्वारा ही सम्भव है। अतः गृहस्थ जीवन में प्रवेष करना विवाह से ही सम्भव है। विवाह एक सर्वव्यापी एवं सार्वभौमिक संस्था है जो विष्व के समस्त समाजों में किसी न किसी रूप में विद्यमान है, विवाहोपरांत ही मनुष्य के धार्मिक क्रियाकलाप, सन्तानोत्पत्ति, श्रम विभाजन, पारस्परिक सहभागिता, आर्थिक सम्बंध, सन्तान के प्रति उŸारदायित्वों की पूर्ति, सन्तान के प्रति माता-पिता के कर्तव्यों की पूर्ति, परम्पराओं के नियमों का पालन, मानसिक एवं यौन प्रवृतियों की वैधानिक रूप से सन्तुष्टि सम्भव हो सकती है, इस कारण विवाह को सार्वभौमिक रूप से सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है।
Details
- Publication Date
- Oct 22, 2020
- Language
- English
- ISBN
- 9781716506598
- Category
- Education & Language
- Copyright
- All Rights Reserved - Standard Copyright License
- Contributors
- By (author): डॉ. सुषमा नयाल
Specifications
- Format
- EPUB