उराॅंव जनजातिः शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन
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भूमिका
ऋगवेद-‘‘शिक्षा सारे प्रकाश का स्रोत है।’’
किसी भी समाज की उन्नति एवं विकास के लिए शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। शिक्षा के अभाव मंे विकसित एवं सभ्य समाज का निर्माण, कल्पना मात्र है। भारत एक विशाल देश है जिसमें अनेक विविधताएँ हंै। आदिकाल से ही यह विभिन्न धर्मों, मतो,ं सम्प्रदायों, सस्ंकृतियों, प्रजातियों, जनजातियांे की कर्मभूमि रहा है। प्रायः अधिकांश जनजातियाँ एसेे भौगोलिक क्षेत्रों में निवास करती है जहाँ सभ्यता का प्रकाश बहुत कम पहुँच पाया है। भारतीय संविधान में उन वर्गो के उत्थान और कल्याण के लिए विशेष प्रावधान किये गये हैं जो कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक दृष्टि से पिछडे़ हुए हंै। इसी आशय से जिन जनजातियों के नाम संविधान की अनुसूची में सम्मिलित किए गए हंै, उन सभी को अनुसूचित जनजाति के नाम से जाना जाता है।
जनजाति या आदिम जाति जैसे नामों से जाने वाली जनसमुदाय स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात दिये गये तमाम संवैधानिक प्रावधानों के बाद भी आज समाज में अपनी मजबूत स्थिति बनाये रख पाने मंे सफल नहीं रहीं है। यह बात अलग है कि भारत के दुर्गम क्षेत्रों में आज भी ऐसेे मानव समूह है जो हजारो वर्षों से शेष विश्व की सभ्यता से दूर अपनी विशिष्ट सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना की पहचान बनाये हुए है। ये मानव समूह बीहड़ जंगलों, मरूस्थलियों, ऊँचे पर्वत शिखरों और अनुर्वर पठारों के उन अंचलों में निवास करते हैं जिन्हें आधुनिक समाज की अर्थदृष्टि अनुत्पादक मानती है। भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जनजातियों का महत्वपूर्ण स्थान है।
Details
- Publication Date
- Apr 12, 2021
- Language
- Hindi
- ISBN
- 9781667170282
- Category
- Education & Language
- Copyright
- All Rights Reserved - Standard Copyright License
- Contributors
- By (author): निर्मल कुमार मंडल
Specifications
- Format
- EPUB